Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - बथुए की पत्ती, मूंगे जैसी बाल - जगदीश गुप्त

बथुए की पत्ती, मूंगे जैसी बाल / जगदीश गुप्त


पौधों में उभरा
सीताओं का रूप
पछुआ के झोंकों से
हिल उठती धूप

बैंगनी-सफ़ेद बूटियों की हिलकोर
पीले फूलों वाली छींट सराबोर

ओस से सनी
चिकनी मिट्टी की गंध
पाँवों की फिसलन
बन जाती निर्बन्ध

शब्द-भरी नन्हीं चिड़ियों की बौछार
लहराकर तिर जाती आँखों के पार

मेड़ के किनारे
पगडंडी के पास
अनचाहे उग आती
अजब-अजब घास

इक्का-दुक्का उस हरियाली के बीच
कुतरती गिलहरी, फिर-फिर दानें खींच

पकने में होड़ किए
गेहूँ की बाल
बथुए की पत्ती
मूंगे जैसी लाल ।

बथुए की कच्ची पत्ती हरी होती है,पर पकने पर वह एकदम लाल हो जाती है ।

   1
0 Comments